लखनऊ। नौ साल पहले लखनऊ के जिस गौरी हत्याकाण्ड ने पूरे शहर को झकझोर दिया था, उसके आरोपी हिमांशु प्रजापति को हाईकोर्ट से सोमवार को जमानत मिल गई। हिमांशु ने एक तरफा प्यार में गौरी के शरीर को आरी से टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे। फिर इन टुकड़ों को बोरियों में भरकर शहीद पथ के किनारे अलग-अलग स्थानों पर फेंके थे। पुलिस की कई टीमों ने वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ इस केस का पर्दाफाश किया था और चार्जशीट दाखिल की थी। पर, इसके बाद कोर्ट में प्रभावी पैरवी न होने से आरोपी को इसका फायदा मिल गया। हालांकि इस हत्याकाण्ड का ट्रॉयल अभी चल रहा है।
अमीनाबाद में रहने वाले व्यापारी शिशिर श्रीवास्तव की बेटी गौरी (19) विधि की पढ़ाई कर रही थी। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। एक फरवरी,2015 को वह पिता की जैकेट लॉंड्री में डालने के लिए घर से निकली थी। उसने मां तृप्ति को बताया था कि उसे मंदिर जाना है। उसके बाद वह घर आयेगी। शाम चार बजे तक वह नहीं लौटी तो घर वालों ने उसका फोन मिलाया। हर बार फोन कोई लड़का उठाता और कहता कि गौरी अभी घर लौट आयेगी। शिशिर ने कई बार उससे गौरी से बात करवाने को कहा लेकिन उसने नहीं करवायी। इस पर उन्होंने अनहोनी की आशंका से अमीनाबाद पुलिस को सूचना दी।
टुकड़ों में मिले थे शव
पुलिस उसे तलाश कर रही थी तभी दो फरवरी को सुबह शहीद पथ के पास एक बोरी में कुछ मांस के टुकड़े मिले। उसे कुत्ते नोच रहे थे। पुलिस ने टुकड़ों को कब्जे में लिया। इसमें कटे पैर भी थे। यह टुकड़े लड़की के लगे। कुछ दूर झाड़ियों में एक और बोरी में टुकड़े मिले। इसमें कटे हाथ व सिर था। थोड़ा आगे शरीर के और भी अंग बोरी में मिले। पुलिस भी यह सब देख दहल गई थी। अमीनाबाद पुलिस शिशिर को अस्पताल ले गई जहां सारे टुकड़े रखे गये थे। शिशिर व तृप्ति ने सिर देखकर उसकी पहचान अपनी बेटी के रूप में की। पुलिस ने गौरी की कॉल डिटेल निकलवायी तो उससे कुछ खास नहीं पता चला। सबसे ज्यादा कॉल माता-पिता की ही थी। साथ ही जिन दोस्तों से बात की थी वह संदिग्ध नहीं लगे।
पूरा शहर दहल गया था इस घटना से
गौरी की इस तरह से हत्या ने पूरे शहर को झकझोर दिया था। हर कोई यही कह रहा था कि हत्यारे का जल्दी पता चले और उसे फांसी की सजा हो। सोशल मीडिया पर उस समय गौरी हत्याकाण्ड की छाया रहा। गौरी के माता-पिता बेहद सदमे में आ गये थे।
सीसी फुटेज से सुबूत मिला, हत्यारा पकड़ा गया
सर्विलांस से पता चला था कि गौरी की अंतिम चैट के समय लोकेशन तेलीबाग थी। पिता ने कहा कि तेलीबाग का जिक्र कभी गौरी ने नहीं किया था। उनका कोई परिचित भी वहां नहीं रहता। इस दौरान ही एक सीसी फुटेज मिला जिसमें गौरी कुछ दूर पैदल चलती दिखी और बाद में एक बाइक पर वह बैठ गई। तब आरोपी का चेहरा साफ नहीं दिखा था लेकिन बाइक के आधार पर हिमांशु का पता चल गया था। हिमांशु को जब पुलिस ने सात दिन बाद पकड़ा तो उसने कुबूला कि एक तरफा प्यार में उसने गौरी की हत्या की है। वह एक दोस्त के जरिये उसके सम्पर्क में आया था। गौरी से उसने मोबाइल का पासवर्ड पूछा था न बताने पर उसका गला गुस्से में दबा दिया था। उसने जब गौरी के शरीर के आरी से टुकड़े तो उस समय वह मरी नहीं थी बल्कि कोमा में आ गई थी। यह बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साबित हुई थी। हालांकि हिमांशु ने उसे मरा समझ लिया था।
पुलिस की लापरवाही से मिली इस हत्यारोपी को जमानत
इस हत्याकाण्ड के ट्रॉयल के दौरान पुलिस की लापरवाही का फायदा आरोपी हिमांशु प्रजापति को मिला। हिमांशु का केस लड़ रहे एडवोकेट शिवम गुप्ता ने कई तर्क रखे। इस पर सरकारी वकील ने पैरवी तो की लेकिन कोर्ट ने कुछ तथ्यों पर सवाल पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में 75 गवाह बनाये थे लेकिन इनमें से सिर्फ 14 गवाहों का ही परीक्षण कराया गया। बाकी के बारे में कोई तथ्य कोर्ट में अब तक नहीं पेश किये गये। इसके अलावा कोर्ट ने मोबाइल की बरामदगी को फर्जी बताया। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरी पर मिले खून के निशान की फोरेंसिक लैब में करायी गई जिसमें सिर्फ यह बताया गया कि यह खून किसी लड़की का है। यह लड़की गौरी ही है, इस बारे में कोई तथ्य नहीं है। पुलिस ने गौरी के माता-पिता का डीएनए सैम्पल जांच के लिये नहीं भेजा। साथ ही यह भी अपने आदेश में कई और कारण गिनाये जिसके आधार पर जमानत दी गई। इससे पहले इसी कोर्ट ने 11 जुलाई,2022 को हिमांशु की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। यह सुनवाई जस्टिस सौरभ लवानिया की कोर्ट में हुई है।
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