वकालत पढ़ने गए, नेता बनकर लौटे, 8 साल ईरान से जंग लड़ने वाले सद्दाम ऐसे बने इराक के तानाशाह

वकालत पढ़ने गए, नेता बनकर लौटे, 8 साल ईरान से जंग लड़ने वाले सद्दाम ऐसे बने इराक के तानाशाह

अमेरिका से सद्दाम की दुश्मनी उनके खात्मे का कारण बनी.

दो दशक तक इराक पर शासन करने वाले तानाशाह सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को फांसी दे दी गई थी. यह वही सद्दाम हुसैन थे जिन्होंने ईरान के साथ आठ सालों तक एक ऐसा युद्ध लड़ा जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था. यह जरूर हुआ कि इस युद्ध के कारण इराक आर्थिक तंगी का शिकार हो गया और उसे कुवैत पर हमला करना पड़ा. इसके कारण अमेरिका से उसकी दुश्मनी हुई और अंतत: सद्दाम के खात्मे का कारण बना. इसी मौके पर आइए जान लेते हैं कि आखिर वकील बनते-बनते सद्दाम कैसे इराक के तानाशाह बन गए थे.

बगदाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल ओजा गांव में सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल 1937 को हुआ था. बताया जाता है कि सद्दाम हुसैन के पिता बचपन में ही एक दिन लापता हो गए थे. इसके बाद मां ने अकेले उनको पाला था. सद्दाम पर अपने चाचा का काफी प्रभाव पड़ा, जो बाथ पार्टी के सदस्य थे. कैंसर से सद्दाम के भाई की मौत के बाद उनकी मां इस स्थिति में नहीं रह गईं कि अकेले सद्दाम का पालन-पोषण कर सकें.

इजिप्ट में की थी कानून की पढ़ाई

ऐसे में सद्दाम बगदाद चले गए और अपने राष्ट्रवादी चाचा के साथ रहने लगे. इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्द अल-करीम कासिम पर एक जानलेवा हमला किया गया था. बताया जाता है कि इसकी साजिश में सद्दाम भी शामिल थे. हमला नाकाम होने के बाद सद्दाम सीरिया चले गए. वहां से इजिप्ट गए और कानून की पढ़ाई की. साल 1963 में जब कासिम सत्ता से बेदखल कर दिए गए, तब तक वकील बन चुके सद्दाम इराक लौटे और बाथ पार्टी का हिस्सा बन गए.

बाथ पार्टी के हाथ से गई सत्ता, सद्दाम को जाना पड़ा जेल

ब्रिटिश शासन के खिलाफ बाथ पार्टी ने साल 1963 में विद्रोह के बाद इराक की जो सत्ता हासिल की थी, उसे कुछ ही महीने में पूर्व राष्ट्रपति ब्रिगेडियर कासिम के सहयोगी कर्नल अब्द अल सलाम मोहम्मद आरिफ ने बाथ पार्टी को बेदखल कर हासिल कर लिया. इसके कारण सद्दाम हुसैन जेल में डाल दिए गए, जहां से वह भाग निकले और बाथ पार्टी में सहायक महासचिव बनाए गए. साल 1968 में इराक में फिर सत्ता के खिलाफ विद्रोह हुआ और 31 साल के सद्दाम हुसैन ने जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर सत्ता पर हथिया ली.

सोवियत संघ का साथ दिया तो पश्चिमी देशों की भौहें तनीं

बताया जाता है कि सद्दाम और जनरल अहमद दोनों ही तिकरित के थे. उनमें रिश्तेदारी थी और देखते ही देखते दोनों बाथ पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता बन गए. जनरल अल बक्र की अगुवाई में सद्दाम हुसैन ने इराक में कई ऐसे काम किए जिनसे पश्चिमी देशों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. इराक ने शीतयुद्ध के दौरान साल 1972 में सोवियत संघ के साथ 15 सालों का सहयोग समझौता किया था.

तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर देश का जीवन स्तर सुधारा

सद्दाम ने पश्चिमी देशों को सस्ती कीमत पर तेल देने वाली इराक की कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. जल्द ही इराक अरब देशों में सबसे ऊपर जीवन स्तर वाला देश बन गया. इधर, सद्दाम धीरे-धीरे सत्ता पर पकड़ मजबूत करते गए और रिश्तेदारों व करीबियों को महत्वपूर्ण पद देते रहे. साल 1979 में सद्दाम ने जनरल अल बक्र को खराब स्वास्थ्य के नाम पर इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया और खुद इराक के राष्ट्रपति बन गए.

Saddam Hussein Pic

साल 1979 में सद्दाम ने जनरल अल बक्र को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया और खुद इराक के राष्ट्रपति बन गए. फोटो: Alain Nogues/Sygma/Sygma via Getty Images

संयुक्त राष्ट्र संघ ने किया था सम्मानित

बाथ पार्टी के उपाध्यक्ष के रूप में काम करते हुए सद्दाम ने राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया. इराक के शहरों में रीडिंग सर्किल स्थापित किए. इन कक्षाओं में न जाने वालों को तीन साल की सजा का प्रावधान किया. सद्दाम ने सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनवाए. चिकित्सा की ऐसी व्यवस्था की, जिसने पूरे क्षेत्र में सबको पीछे छोड़ दिया. इसके कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के एडुकेशनल, साइंटिफिक और कल्चरल ऑर्गनाइजेशन ने निरक्षरता को देश से समाप्त करने के लिए सद्दाम हुसैन को सम्मानित भी किया था.

इस्लाम में रोक के बावजूद खून से लिखवाई थी कुरान

इस्लाम में भले ही खून से कुरान लिखना हराम माना जाता है पर सद्दाम हुसैन के ऊपर इसका कोई असर नहीं था. उन्होंने अपने खून से कुरान लिखवाई. कैलिग्राफर अब्बास शाकिर जौदी ने दो सालों में सद्दाम के खून का इस्तेमाल कर कुरान के 336000 शब्द लिखे थे. ऐसा माना जाता है कि जितने खून से कुरान के इतने शब्द लिखे गए थे, उतना खून दो साल में डोनेट करना संभव नहीं है. विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षित तरीके से ऐसा करने के लिए नौ सालों का समय चाहिए. इसके बावजूद सद्दाम हुसैन नहीं रुके थे.

ईरान और कुवैत युद्ध ने बदल दिए हालात

देखते ही देखते सद्दाम हुसैन खुद को अरब देशों का सबसे प्रभावशाली प्रमुख मानने लगे. उन्होंने साल 1980 में नई इस्लामिक क्रांति को कमजोर करने के लिए पश्चिमी ईरान में अपनी सेना उतार दी. इससे आठ सालों तक ईरान के साथ इराक ने युद्ध लड़ा और लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी. इससे हुए आर्थिक नुकसान से उबरने के लिए अगस्त 1990 में कुवैत को तेल की कीमतों को गिराने के लिए दोषी करार देते हुए सद्दाम ने उस पर हमला कर दिया. इस पर अमेरिका कुवैत के साथ खड़ा हो गया और इराक को बमबारी में काफी नुकसान उठाना पड़ा. जनवरी 1991 में आखिरकार इराक को पीछे हटना पड़ा.

तमाम तरह के आरोप लगाते हुए अमेरिका ने अपने कई सहयोगी देशों के साथ मार्च 2003 में इराक पर हमला कर दिया. सद्दाम हुसैन की सरकार को 09 अप्रैल 2003 को गिरा दिया. 13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन को अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया. उन पर कई मामलों में मुकदमा चला और पांच नवंबर 2006 को सजा-ए-मौत सुना दी गई. अंतत: 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी गई.

यह भी पढ़ें: कैसा है इजराइल का THAAD सिस्टम, जिसने हूतियों की मिसाइल को रोका?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *