कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु, जानिए क्या है इन साधुओं की रहस्यमयी दुनिया?

Where do Naga Sadhus disappear after Kumbh, know what is the mysterious world of these Sadhus?Where do Naga Sadhus disappear after Kumbh, know what is the mysterious world of these Sadhus?

महाकुंभ मेले का आयोजन 12 साल में एक बार होता है. इस साल कुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है. कुंभ के दौरान नागा साधु आकर्षण का केंद्र होते हैं. यहां बड़ी संख्या में नागा साधु नजर आते हैं, लेकिन मेले के बाद ये साधु कहीं नजर नहीं आते. फिर ये कहां गायब हो जाते हैं? लाखों नागा साधु बिना किसी गाड़ी का इस्तेमाल किए और लोगों की नजरों में आए बिना कुंभ पहुंचते हैं. ऐसा में माना जाता है कि वह हिमालय में रहते हैं और सिर्फ कुंभ मेले में ही आम लोगों के बीच दिखाई देते हैं.

कुंभ में दो सबसे बड़े नागा अखाड़े वाराणसी में महापरिनिर्वाण अखाड़ा और पंच दशनाम जूना अखाड़ा हैं. ज्यादातर नागा साधु भी यहीं से आते हैं. नागा साधु अक्सर त्रिशूल लेकर चलते हैं और अपने शरीर को भस्म से ढकते हैं. वह रुद्राक्ष की माला और जानवरों की खाल के कपड़े पहनते हैं. कुंभ मेले में सबसे पहले उन्हें स्नान करने का अधिकार होता है. उसके बाद ही बाकी श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति दी जाती है, लेकिन मेले के बाद सभी अपनी-अपनी रहस्यमयी दुनिया में लौट जाते हैं.

नागा साधुओं का जीवन
कुंभ मेले के दौरान नागा साधु अपने अखाड़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं. कुंभ के बाद वह अपने-अपने अखाड़ों में लौट आते हैं. अखाड़े भारत के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं और ये साधु वहां ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षा देते हैं. नागा साधु अपनी तपस्वी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं. कुंभ के बाद कई नागा साधु ध्यान और तपस्या के लिए हिमालय, जंगलों और बाकी शांत और एकांत स्थानों पर चले जाते हैं. वे कठोर तपस्या और ध्यान में समय बिताते हैं, जो उनके आत्मा के विकास और आध्यात्मिक अभ्यास के लिए काफी अहम माना जाता है. वह सार्वजनिक तौर पर तभी सब के सामने आते हैं, जब कुंभ मेला या अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं.

तीर्थ स्थानों पर आवास
कुछ नागा साधु काशी (वाराणसी), हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन या प्रयागराज जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर रहते हैं. ये स्थान उनके लिए धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र हैं. नागा साधु बनने या नए नागा साधुओं को दीक्षा देने का काम प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ में ही होता है, लेकिन इन्हें अलग-अलग नागा कहा जाता है. जैसे, प्रयाग में दीक्षा लेने वाले नागा साधु को राजराजेश्वर कहा जाता है. उज्जैन में दीक्षा लेने वाले को खुनी नागा साधु कहा जाता है और हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी नागा साधु कहा जाता है. इसके साथ ही नासिक में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी और खिचड़िया नागा साधु कहा जाता है.

धार्मिक यात्राएं करते हैं
नागा साधु पूरे भारत में धार्मिक यात्राएं भी करते हैं. वह अलग-अलग मंदिरों, धार्मिक स्थलों पर जाकर और धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं. कई नागा साधु गुप्त रहते हैं और आम समाज से दूर जिंदगी बिताते हैं. उनकी साधना और जीवनशैली उन्हें समाज से अलग और आजाद बनाती है.

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