Lohri 2025 Katha: लोहड़ी पर्व के दिन जरूर सुनें ये कथा, जीवन में बनी रहेगी खुशहाली!

Lohri 2025 Katha: लोहड़ी पर्व के दिन जरूर सुनें ये कथा, जीवन में बनी रहेगी खुशहाली!

लोहड़ी कथा

Lohri 2025 Puja Katha: लोहड़ी पंजाब और हरियाणा का एक लोकप्रिय पर्व है. लोहड़ी का पर्व पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग शाम के समय अग्नि जलाते हैं और उसकी पूजा कर परिक्रमा करके उसमें तिल और मूंगफली आदि डालते हैं. जिससे उनके जीवन में खुशियां बनी रहें और कष्ट दूर हों. इसके अलावा लोहड़ी के मौके पर एक दूसरे को बधाई देते हैं और संगीत का आयोजन कर गीत गाते हैं. इस मौके लोहड़ी मनाने वालों को लोहड़ी की कथा सुनना बहुत जरूरी होता है. इस कथा के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

खासतौर पर रबी की फसलों की कटाई की खुशी में लोहड़ी माता की पूजा की जाती है. इस पर्व की शुरुआत और महत्व से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से लोहड़ी माता की कहानी प्रमुख है.

लोहड़ी माता के मंदिरों में विशेष रूप से अग्नि की पूजा की जाती है. तिल, गुड़, मक्का, और मूंगफली जैसी चीजें अर्पित की जाती हैं. मंदिरों में पारंपरिक भजन और गीत गाए जाते हैं, और सामूहिक रूप से लोहड़ी की अग्नि के चारों ओर लोग नृत्य करते हैं. लोहड़ी माता की पूजा को एक पारंपरिक और सामूहिक उत्सव के रूप में मनाते हैं, जो लोगों के बीच भाईचारे और खुशी का संदेश फैलाता है.

लोहड़ी की पौराणिक कथा

लोहड़ी की जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में एक बार सभी लोग मकर संक्रांति की तैयारियों में लगे हुए थे. इस दौरान कंस से अपने एक राक्षस को भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेज दिया. आए दिन कोई न कोई राक्षस भगवान कृष्ण को मारने के लिए आता ही था. ऐसी ही मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले कंस ने लोहिता नाम के राक्षस को भगवान कृष्ण का वध करने के लिए भेज दिया. लेकिन, भगवान कृष्ण ने खेल-खेल में उस राक्षस को मार दिया. ऐसी मान्यता है कि इस दिन लोहिता का वध होने के कारण इसे लोहड़ी के नाम से पर्व के रूप में मनाया जाने लगा.

इसके अलावा एक मान्यता यह भी हैं कि दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती के योगाग्नि दहन की स्मृति में लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है. इसलिए लोहड़ी के मौके पर इस कथा को सुनने का भी बहुत अधिक महत्व है.

दुल्ला भट्टी की कहानी भी लोहड़ी के मौके पर बहुत प्रचलित है. दुल्ला भट्टा का जन्म 1547 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था. दुल्ला भट्टी गरीबों के मसीहा थे. वह अमीरों से धन छीनकर गरीबों में बांट दिया करते थे. गरीब इन्हें मसीहा की तरह मानते थे. लोहड़ी की एक अन्य कथा के अनुसार, सुंदर दास नाम का एक किसान था. जिसकी दो बेटियां थी सुंदरी और मुंदरी. इन दोनों लड़कियों को लेकर वहां के नंबरदार की नीयत ठीक नहीं थी. वह उनसे शादी करना चाहते हैं.

किसान ने अपनी बेटियों का विवाह अपने मनपसंद के दूल्हे से करना चाहते हैं उसने अपनी सारी व्यथा दुल्ला भट्टी से सुनाई. दुल्ला भट्टी ने लोहड़ी के दिन नंबरदार के खेतों में आग लगा दी और सुंदरी और मुंदरी के भाई बनकर उनकी शादी कराई. इस घटना की याद में लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है. ऐसा कहा जाता है कि बादशाह अकबर के कहने पर दुल्ला भट्टा को पकड़कर फांसी लगा दी गई थी.

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