

Supreme Court on Eviction: यह बात सही है कि भागदौड़ भरी जिंदगी बदलती लाइफस्टाइल की वजह से भी सिंगल परिवारों की संख्या बढ़ गई है. शायद इसीलिए माता-पिता और बच्चों के रिश्तों के सामने एक नई चुनौती है. जहां कभी बुजुर्ग माता-पिता को घर की नींव माना जाता था वहीं अब कई बार उन्हें अपने ही बच्चों से सम्मान और देखभाल की लड़ाई लड़नी पड़ रही है. ऐसे में जब बुजुर्ग अपने ही घर में अपमान उपेक्षा या मानसिक पीड़ा झेलते हैं तो सवाल उठता है क्या वो अपने बच्चों को घर से निकाल सकते हैं. इसी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है.
सीनियर कपल की याचिका खारिज कर दी
असल में सीनियर नागरिकों की देखरेख और भरण-पोषण से जुड़ा एक अहम सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने आया कि क्या बुजुर्ग मां-बाप अपने बच्चों को घर से बेदखल कर सकते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक सीनियर कपल की याचिका खारिज कर दी जिसमें उन्होंने अपने बेटे को घर से निकालने की मांग की थी. इस याचिका में उन्होंने Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का हवाला दिया था. यह कानून बुजुर्गों को भरण-पोषण पाने का अधिकार देता है लेकिन इसमें बेदखली का अधिकार नहीं दिया गया है.
शर्तें पूरी नहीं होतीं तो बेदखली संभव
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले के फैसलों में यह क्लियर किया है कि अगर बुजुर्ग अपनी संपत्ति किसी शर्त के साथ बच्चों को देते हैं और वे शर्तें पूरी नहीं होतीं तो बेदखली संभव है. कानून की धारा 23 के तहत अगर किसी बुजुर्ग ने अपनी संपत्ति इस शर्त पर किसी को दी है कि वह उसकी देखभाल करेगा लेकिन वह शख्स ऐसा नहीं करता तो वह हस्तांतरण अमान्य माना जा सकता है. ऐसे मामलों में बुजुर्ग ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं और संपत्ति वापस लेने की मांग कर सकते हैं.
कोर्ट ने यह भी कहा..
रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक फैसले में कहा था कि यदि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल न की जा रही हो या वे प्रताड़ना का शिकार हो रहे हों तो Senior Citizens Act के तहत गठित ट्रिब्यूनल बच्चों या रिश्तेदारों को घर से निकालने का आदेश दे सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अधिकार कानून की धारा 23(2) में निहित है जिसमें बुजुर्ग संपत्ति से भरण-पोषण का हक रखता है और यदि वह संपत्ति किसी को ट्रांसफर कर दे तो यह हक नए मालिक पर भी लागू होता है.
बेटे की बेदखली से इनकार कर दिया..
फिलहाल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेटे की बेदखली से इनकार कर दिया. बुजुर्ग दंपति ने दावा किया कि उनका बेटा मानसिक और शारीरिक रूप से उन्हें प्रताड़ित करता है. 2019 में ट्रिब्यूनल ने आंशिक राहत देते हुए बेटे को घर के किसी और हिस्से में एंट्री न करने और केवल अपने दुकान और कमरे तक सीमित रहने का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा कि जब तक बेटे के दुर्व्यवहार का कोई नया प्रमाण न हो, तब तक बेदखली का आदेश जरूरी नहीं.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस फैसले से यह क्लियर है कि हर स्थिति में बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल को सभी पक्षों के दावों की जांच करनी होगी और केवल तभी बेदखली का फैसला लिया जा सकता है जब बुजुर्गों की सुरक्षा और देखभाल के लिए यह आवश्यक हो. यानी कानून बुजुर्गों को सुरक्षा देता है लेकिन बेदखली तभी संभव है जब हालात गंभीर हों और न्यायसंगत रूप से इसका आधार हो.