भारत में समंदर के किनारे मिला वो ‘खजाना’ जिससे दुनिया हैरान….

नई दिल्ली: ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के पास एक जगह है खुर्दा जिला। समंदर से करीब 30 किलोमीटर दूर यहां तिरीमल गांव के पास नारा हुडा नाम की एक जगह पर कुछ टीले पाए गए, जिनकी खुदाई हुई। इस खुदाई में पूर्वी भारत की पुरानी संस्कृति के बारे में पता चला है। यह संस्कृति ‘chalcolithic’ कहलाती है। इससे पता चलता है कि पुराने समय में लोग कैसे रहते थे और खेती करते थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम 2021 से यहां खुदाई कर रही है। तीसरे चरण की खुदाई में ‘chalcolithic’ समय के अवशेष मिले हैं। पुरातत्ववेत्ता पीके दीक्षित […]
The 'treasure' found on the seashore in India surprised the worldThe 'treasure' found on the seashore in India surprised the world

नई दिल्ली: ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के पास एक जगह है खुर्दा जिला। समंदर से करीब 30 किलोमीटर दूर यहां तिरीमल गांव के पास नारा हुडा नाम की एक जगह पर कुछ टीले पाए गए, जिनकी खुदाई हुई। इस खुदाई में पूर्वी भारत की पुरानी संस्कृति के बारे में पता चला है। यह संस्कृति ‘chalcolithic’ कहलाती है। इससे पता चलता है कि पुराने समय में लोग कैसे रहते थे और खेती करते थे।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम 2021 से यहां खुदाई कर रही है। तीसरे चरण की खुदाई में ‘chalcolithic’ समय के अवशेष मिले हैं। पुरातत्ववेत्ता पीके दीक्षित ने बताया कि खुदाई में मिट्टी के गोल ढांचे मिले हैं। कुछ में दीवारें हैं और कुछ बिना दीवारों के हैं। मिट्टी की दीवारें और खंभे लगाने के लिए छेद भी मिले हैं। जानते हैं कैलकोलिथिक युग के बारे में और यह भी जानते हैं कि 7 हजार साल पहले इन दीवारों के पीछे क्या हुआ था।

गोल झोपड़़ियां और लाल दीवारों के पीछे क्या
पुरातत्ववेत्ता पीके दीक्षित के अनुसार, यहां chalcolithic युग की मुख्य खोजें तीन-चार तरह की गोल झोपड़ियां, पत्थर और तांबे की चीजें मिली हैं। इससे पता चलता है कि पुराने समय के लोग यहां बसने लगे थे और उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि झोपड़ियों के आसपास की जगह और आंगन लाल रंग की मिट्टी से ढके हुए थे।

ये भी महत्वपूर्ण चीजें मिली हैं, यहां जानिए
खुदाई में पत्थर और लोहे के औजार, तांबे और हड्डियों से बनी चीजें, कीमती पत्थर, मिट्टी की बनी मालाएं, कांच की चूड़ियों के टुकड़े, मिट्टी के जानवरों की मूर्तियां, कंचे, खिलौना गाड़ी के पहिए, पत्थर को चमकाने के औजार, हथौड़े और मिट्टी की तख्तियां भी मिली हैं।

क्या था कैलकोलिथिक युग, जो बेहद अहम
कैलकोलिथिक युग, जिसे ताम्र-पाषाण युग भी कहा जाता है। नवपाषाण युग के बाद शुरू होता है, जहां मनुष्य पत्थर के औजारों से तांबे के औजारों का उपयोग करने लगे। यह युग लगभग 4000 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक था। इस युग में तांबे का उपयोग शुरू हुआ, और इसे कांस्य युग का एक भाग भी माना जाता है। कैलकोलिथिक चरण से संबंधित बस्तियां छोटानागपुर पठार से गंगा के बेसिन तक फैली हुई थीं।

भारत में इन जगहों पर मिले हैं ताम्र पाषाण युगीन स्थल
ताम्रपाषाण युग मुख्यता ग्रामीण संस्कृति थी। राजस्थान में गिलुंद एवं अहार ताम्रपाषाण युगीन स्थल है। महाराष्ट्र में प्रवरा नदी तट पर जोरवे संस्कृति विकसित हुई थी। भारत में ताम्र पाषाण युगीन स्थल हैं गिलुंद, बागोर (राजस्थान), दैमाबाद, इनामगांव, नेवासा (महाराष्ट्र), नवदाटोली, नागदा, कायथा, एरण (मध्य प्रदेश) हैं। ये बसावट हड़प्पा सभ्यता से काफी पहले की हैं।

कांसे के ही हथियार और इसी के बर्तन
भारत में लगभग 2000 ईसा पूर्व के पूर्व-हड़प्पा युग को तांबे के युग की शुरुआत के रूप में जाना जाता है। इस युग में तांबे के औजारों का उपयोग चाकू, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, छड़ें, बर्तन और कई अन्य चीजें बनाने के लिए किया जाता था। तांबे और टिन को मिलाकर कांस्य बनाया जाता था, जो तांबे से ज्यादा सख्त था। यह औजार और हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

तीन अलग-अलग समय में हुई बसावट
नारा हुडा में मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं। ये लाल रंग के, भूरे रंग के, लाल रंग से रंगे हुए, चॉकलेट रंग से रंगे हुए और काले-लाल रंग के हैं। कुछ बर्तन छोटे हैं और हाथ से बने हैं, जैसे कि क्रूसिबल (crucibles)। पिछले तीन सालों में खुदाई करने वालों को ऐसी चीजें मिली हैं जिनसे पता चलता है कि इस जगह पर तीन अलग-अलग समय में लोग रहे हैं। पहला समय ‘chalcolithic’ (2000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) था। दूसरा लौह युग (1000 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व) और तीसरा प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व) था। भारतीय विरासत का ये खजाना सोने के भंडार से भी ज्यादा अहम है।

महानदी डेल्टा में जी बेहतरी जिंदगी, बाद में खस्ताहाल
यह जगह गोलाबई सासन, हरिराजपुर के पास बांगा और महानदी डेल्टा के आसपास सुआबरेई जैसी जगहों के समय की है। यह शिशुपालगढ़ से भी पुरानी है, जो बाद में बना। उन्होंने यह भी कहा कि खुदाई में मिली चीजों से पता चलता है कि लोग अच्छी जीवनशैली जी रहे थे। लेकिन बाद में लौह युग और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में यह जीवनशैली खराब होती गई।

ASI की टीम क्यों खुदाई कर रही है, जानिए
पहले भी नारा हुडा और खुर्दा जिले के तिरीमल के पास अन्नालाजोडी गांव में ‘neo-chalcolithic’ युग की कई चीजें मिली थीं। ‘Neo-chalcolithic’ युग ‘chalcolithic’ युग से थोड़ा पहले का समय था। इससे पता चलता है कि इस इलाके में बहुत पहले से लोग रहते थे। ASI की टीम अभी भी खुदाई कर रही है, ताकि इस जगह के बारे में और जानकारी मिल सके। वे यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि पुराने समय में लोग कैसे रहते थे, क्या खाते थे और क्या काम करते थे। इससे हमें अपने इतिहास को समझने में मदद मिलेगी।

कोयला खनन के चलते लुप्त हो रही हैं विरासत
प्रागैतिहासिक शैलकला के लिए प्रसिद्ध इस्को गांव झारखंड के हजारीबाग से पच्चीस किलोमीटर दूर बरकागांव के पास पुंकरी बरवाडीह महापाषाण स्थल के पास है।इन महापाषाणों का अपना एक अस्तित्व है और पुंकरी बरवाडीह स्थल विलुप्त होने के कगार पर है।हजारीबाग में लगभग नौ हजार साल पुरानी मेसो-कैलकोलिथिक शैलकलाओं वाली प्राचीन गुफाओं के क्षेत्र को कोयला खनन ने काफी तबदील कर दिया है। ये खबर आप गज़ब वायरल में पढ़ रहे हैं।