मोदी सरकार के एक ऐलान से रॉकेट हो गए बैंकों के शेयर, 131 फीसदी रिटर्न की मारी जोरदार छलांग!


केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का प्लान फिलहाल रोक दिया है. मनीकंट्रोल के अनुसार, वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि अब बैंकों को निजी हाथों में देने की जरूरत नहीं है. उनका कहना था कि ये बैंक अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और लोगों का इन पर भरोसा भी ज्यादा है. 2021-22 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी. यह फैसला नई सार्वजनिक क्षेत्र की नीति का हिस्सा था, जिसमें रणनीतिक क्षेत्रों में सिर्फ चार सरकारी यूनिट रखने की बात थी. इसका मकसद था बैंकिंग सेक्टर में कॉम्टिशन बढ़ाना और विकास को गति देना. लेकिन अब सरकार ने इसे रोकने पर विचार किया है.

बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 में बदलाव की जरूरत
पब्लिक सेक्टर के बैंकों के परफॉर्मेंस हाल के सालों में शानदार रहे है. कुछ सरकारी बैंक तो निजी बैंकों से भी बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. 2022-23 में इन बैंकों का कुल शुद्ध मुनाफा 1.05 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 1.41 लाख करोड़ रुपये हो गया. मई 2024 में आम चुनाव खत्म होने के बाद कई लोगों को उम्मीद थी कि सरकार निजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर देगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. निजीकरण के लिए बैंकिंग कंपनियों (एक्विजिशन एंड ट्रांसफर ऑफ अंडरटेकिंग्स) एक्ट 1970 और 1980, और बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 में बदलाव करने की जरूरत थी, लेकिन ये बदलाव अभी तक तय नहीं हुए हैं.

इस खबर से बैंक निफ्टी और सरकारी बैंकों के शेयरों में तेजी देखी गई. निफ्टी पीएसयू बैंक ने पिछले एक महीने में 3.98 फीसदी का पॉजिटिव रिटर्न दिया है. वहीं, 3 महीनों में 5.82 फीसदी का रिटर्न दिया है. 3 साल में इस इंडेक्स ने 131.74 प्रतिशत का रिटर्न और 5 साल में 418 % का रिटर्न दिया है. अलग-अलग पीएसयू बैंक की बात करें तो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले दो हफ्तों में 2.08 फीसदी और 1 महीने में 4.60 फीसदी का रिटर्न दिया है. इसके अलावा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक महीने में 3.54 फीसदी का रिटर्न दिया है और पिछले 3 महीनों में 8.05 फीसदी का रिटर्न दिया है. इसके अलावा अन्य पीएसयू बैंकों में भी जोरदार तेजी देखने को मिली.

निजीकरण के इस प्रस्ताव का बैंक यूनियनों ने शुरू से ही कड़ा विरोध किया है. यूनियनों का मानना है कि सरकारी बैंक राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं. ये बैंक लोगों की बचत को कृषि जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में लगाते हैं. 2021 में आठ लाख बैंक कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ हड़ताल की थी. यूनियनों का यह लगातार विरोध भी सरकार के पीछे हटने की एक बड़ी वजह बना.

आईडीबीआई बैंक के निजीकरण की बात भी उठी. सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यह बैंक मुनाफे में है, इसलिए इसके शेयर बेचने की जरूरत नहीं. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में आईडीबीआई बैंक के कर्मचारियों से मुलाकात की. डिपाम सचिव अरुणिश चावला ने कहा था कि अगले तीन महीनों में डिवेस्टमेंट की प्रक्रिया पूरी हो सकती है. सरकार और एलआईसी मिलकर बैंक में अपनी 61 फीसदी हिस्सेदारी बेच रहे हैं, जिसमें सरकार की 30.48 फीसदी और एलआईसी की 30.24 फीसदी हिस्सेदारी है.

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