48, 70 या 90, भारत में कितने घंटे काम करने का नियम, कंपनी की मनमानी पर क्या कहता क्या है कानून?

48, 70 या 90, भारत में कितने घंटे काम करने का नियम, कंपनी की मनमानी पर क्या कहता क्या है कानून?

भारतीय कानून फैक्ट्रीज एक्ट में लोगों के अधिकतम काम के घंटे निर्धारित हैं.

इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कुछ समय पहले युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की नसीहत दी थी. उनकी इस सलाह पर काफी बवाल मच गया था. अब लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने उनसे भी आगे बढ़कर बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि सभी कर्मचारियों को हफ्ते में कम से कम 90 घंटे काम करना चाहिए. एसएन सुब्रह्मण्यन के इस बयान से कामकाजी घंटों और कंपनियों के वर्क कल्चर को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है.

ऐसे में सवाल है कि भारत में वर्किंग ऑवर्स पर क्या कहता है कानून है, ओवरटाइम करने पर कंपनी मुनासिब मेहनताना न दे तो कहां शिकायत करें, नियमों का उल्लंघन करने पर कंपनी पर क्या एक्शन लिया जाएगा?

सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम करने का है प्रावधान

भारत में कानून के अनुसार लोगों के अधिकतम काम के घंटे निर्धारित हैं. फैक्ट्रीज एक्ट में कहा गया है कि भारत की फैक्ट्रियों और उत्पादन इकाइयों में एक दिन में अधिकतम 8 से 9 घंटे तक ही काम कराया जा सकता है. हालांकि, सप्ताह में काम के कुल घंटे 48 से ज्यादा नहीं होने चाहिए. यानी छह दिन में अधिकतम 48 घंटे काम करने का ही प्रावधान है.

ऐसे ही अगर किसी फैक्ट्री या उत्पादन इकाई में अधिक काम के बदले ओवरटाइम का भुगतान किया जाता है, तो वह भी सप्ताह में कुल 60 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए. यही नहीं, कानून में यह भी कहा गया है कि रोज काम के दौरान अधिकतम पांच घंटे काम करने के बाद कम से कम एक घंटे का ब्रेक देना जरूरी है.

कार्यालयों और दुकानों के लिए भी काम के घंटे तय

देश के अलग-अलग प्रदेशों में काम के घंटे तय करने के लिए शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट भी बनाए गए हैं. यह कानून कार्यालयों, दुकानों और सेवा इकाइयों में काम करने वालों पर लागू होता है. इसके तहत रोज काम के लिए नौ घंटे तय किए गए हैं. हालांकि, यहां भी हर हफ्ते 48 घंटे से अधिक नहीं कराया जा सकता है.

ओवरटाइम पर दोगुना करना होगा भुगतान

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे के अनुसार, फैक्ट्रीज एक्ट 1948 की धारा 51 में इस बात का प्रावधान किया गया है कि किसी भी वयस्क कर्मी को किसी भी फैक्ट्री में हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम करने की न तो जरूरत है और न ही अनुमति है. इसी कानून की धारा 55 में कहा गया है कि वे लगातार पांच घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे. पांच घंटे काम के बाद कम से कम एक घंटे का रेस्ट जरूरी है.

धारा 59 कहती है कि ओवरटाइम के लिए फैक्ट्रियों और प्रतिष्ठानों को भुगतान करना होगा. अगर कोई कर्मचारी रोज नौ घंटे से ज्यादा या हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम करता है तो वह साधारण वेजेज के दोगुने ओवरटाइम का हकदार होगा. वहीं, आईटी सेक्टर के कर्मचारियों पर शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट और फैक्टरीज एक्ट, दोनों लागू होता है.

कानून के उल्लंघन पर सजा और जुर्माना का प्रावधान

एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे ने बताया कि फैक्ट्री एक्ट 1948 की धारा 92 के अनुसार, अगर कोई मैनेजर या नियोक्ता इस कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो वह सजा का हकदार होगा जो दो साल तक हो सकती है. उस पर एक लाख रुपए तक का फाइन भी लगाया जा सकता है. एक साथ सजा और जुर्माना दोनों से भी उसे दंडित किया जा सकता है.

बार-बार उल्लंघन पर रद्द हो सकता है लाइसेंस

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विनीत जिंदल के अनुसार, आमतौर पर आईटी और सेवा उद्योग में काम के घंटे कंपनी की नीतियों के आधार पर निर्भर होते हैं. हालांकि, इनके लिए भी नियम में किसी भी प्रकार की छूट नहीं है. वहीं कृषि और असंगठित क्षेत्र में कार्यकाल में थोड़ा लचीलापन हो सकता है लेकिन ओवरटाइम और आराम का प्रावधान इनमें भी लागू होता है. एडवोकेट जिंदल का कहना है कि अगर किसी कर्मचारी को अधिक काम करने पर ओवरटाइम नहीं मिलता है तो वह श्रम न्यायालय या श्रम आयुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज करा सकता है. ऐसे में कंपनी के खिलाफ फैक्ट्रीज एक्ट और वेज एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है. यही नहीं, यदि कंपनी कानून का बार-बार उल्लंघन करती है, तो उसका लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है.

श्रम संहिता में भी हफ्ते में 48 घंटे ही काम का प्रावधान

वैसे देश में श्रम संहिता-2020 भी तैयार की गई है. इसके तहत काम के घंटों को बढ़ाकर रोज 12 करने का प्रावधान किया गया है. इसके बावजूद इसमें भी कहा गया है कि हफ्ते में काम के अधिकतम घंटे 48 तक ही सीमित रहेंगे. श्रम संहिता के प्रावधानों को लागू करने का जिम्मा राज्य सरकारों पर है. वे चाहें तो इसे लागू करें, न चाहें तो न करें. इनके अलावा देश में कॉन्ट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) एक्ट 1970 और ठेका श्रमिक कानून भी है. इनके जरिए भी काम के घंटे तय किए जाते हैं. अगर किसी कर्मचारी के साथ नियमों के विरुद्ध काम कराया जा सकता है तो लेबर कोर्ट में शिकायत की जा सकती है.

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