मनोज कुमार का अंतिम संस्कार, प्रेम चोपड़ा, अमिताभ समेत रो पडे बडे-बडे कलाकार

Manoj Kumar's funeral, big artists including Prem Chopra and Amitabh criedManoj Kumar's funeral, big artists including Prem Chopra and Amitabh cried

एक्टर-डायरेक्टर मनोज कुमार का शनिवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। मुंबई में जुहू स्थित पवनहंस श्मशान घाट पर उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर लाया गया था। यहां उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई।

बेटे कुणाल गोस्वामी ने उनको मुखाग्नि दी। मनोज कुमार के अंतिम संस्कार में प्रेम चोपड़ा, सलीम खान, सुभाष घई, अमिताभ बच्चन बेटे अभिषेक के साथ शामिल हुए।

बता दें कि शुक्रवार को 87 साल की उम्र में मनोज कुमार का निधन हो गया था। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। देशभक्ति की फिल्में बनाने के कारण उन्हें भारत कुमार के नाम से भी जाना जाता है।

मनोज कुमार काफी समय से लीवर सिरोसिस से जूझ रहे थे। उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें 21 फरवरी 2025 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

मनोज कुमार को 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया

मनोज कुमार को 7 फिल्म फेयर पुरस्कार मिले थे। पहला फिल्म फेयर 1968 में फिल्म उपकार के लिए मिला था। उपकार ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट डायलॉग के लिए चार फिल्म फेयर जीते। 1992 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 2016 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया।

लाइट टेस्टिंग के लिए कैमरे के सामने खड़े किए गए, यहीं से रोल मिला

एक दिन मनोज कुमार काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे कि उन्हें एक व्यक्ति दिखा। मनोज ने बताया कि वो काम की तलाश कर रहे हैं, तो वो आदमी उन्हें साथ ले गया। उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिला। धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा।

फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से बस चंद मिनट पहले पहुंचते थे। ऐसे में सेट में हीरो पर पड़ने वाली लाइट चेक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा कर दिया जाता था।

एक दिन जब लाइट टेस्टिंग के लिए मनोज कुमार हीरो की जगह खड़े हुए थे। लाइट पड़ने पर उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया। रोल छोटा जरूर था, लेकिन मनोज कुछ मिनट की एक्टिंग में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उसी रोल की बदौलत मनोज कुमार को फिल्म कांच की गुड़िया (1960) में लीड रोल दिया गया। पहली कामयाब फिल्म देने के बाद मनोज ने बैक-टु-बैक रेशमी रुमाल, चांद, बनारसी ठग, गृहस्थी, अपने हुए पराए, वो कौन थी जैसी कई फिल्में दीं।

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