भारत का बड़ा कदम, सिंधु जल संधि रद्द, क्यों अहम हैं ये नदियाँ दोनों देशों के लिए…

Gazab Viral : भारत ने पाकिस्तान के साथ 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है, जिसका कारण पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद का समर्थन बताया गया है। यह फैसला जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद लिया गया।

सिंधु जल संधि क्या है? सिंधु जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी। इस संधि के तहत भारत को रावी, ब्यास, सतलुज नदियों का अधिकार मिला था, जबकि पाकिस्तान को सिंध, झेलम, चिनाब नदियों का अधिकार मिला। दोनों देशों को सीमित तरीके से एक-दूसरे की नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।

क्या यह संधि जरूरी थी? 1947 के विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच पानी को लेकर तनाव बढ़ गया था। 1948 में भारत ने पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति अस्थाई रूप से रोक दी थी, जिसके बाद संधि का निर्माण हुआ। यह संधि 4 युद्धों और राजनीतिक तनावों के बावजूद बनी रही, लेकिन अब टूट रही है।

संधि के टूटने का पाकिस्तान पर प्रभाव: पाकिस्तान की खेती सिंध नदी प्रणाली पर निर्भर है। संधि के टूटने से पाकिस्तान में जल संकट, भूजल की कमी, और खारेपन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं, जिससे फसलें प्रभावित हो सकती हैं और आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।

भारत को क्या लाभ मिलेगा? भारत को अब झेलम, चिनाब, सिंधु पर बांध और प्रोजेक्ट बनाने में कोई रोक नहीं होगी। ये खबर आप गज़ब वायरल में पढ़ रहे हैं। पाकिस्तान से पानी का डेटा साझा नहीं किया जाएगा, और पाकिस्तान के अधिकारियों का निरीक्षण अधिकार भी समाप्त हो जाएगा।

कानूनी रूप से मान्य है? इंडस वाटर ट्रीटी एक स्थायी समझौता है और इसमें बाहर निकलने का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन विवाद सुलझाने के लिए विभिन्न तरीके जैसे स्थायी सिंधु आयोग, न्यूट्रल एक्सपर्ट और आर्बिट्रेशन कोर्ट का प्रावधान है।

भविष्य में क्या हो सकता है? भारत के पास अब पानी को पूरी तरह रोकने की क्षमता नहीं है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण राजनयिक संदेश है। पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, लेकिन भारत की भागीदारी के बिना उसका पक्ष कमजोर होगा।

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