
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में रहने वाले थारू समाज के लिए एक राहत भरी खबर आई है. अब सरकार ने साल 2012 में 4000 से अधिक लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए केस की जांच करने के आदेश दिए हैं. इसके लिए 3 सदस्यीय टीम गठित की है. इस टीम में एक आईएफएस अधिकारी, 2 एसडीओ को रखा गया है. ये तीनों अब सच का पता लगाएंगे और अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेंगे. इससे हजारों लोगों को न्याय मिल सकेगा.
क्या है मामला?
समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल के दौरान, 2012 में लखीमपुर खीरी में थारू आदिवासी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ 4,000 से अधिक वन अपराध मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से कई मामले ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ थे जो शारीरिक रूप से अक्षम थे या जिन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं थीं. यह मामला तब सामने आया जब थारू समुदाय ने अपने वन अधिकारों की कानूनी मान्यता की मांग की थी. याचिका पर सुनवाई चल रही थी. तभी एक समूह ने गिरी हुई लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगल में प्रवेश किया था. इसके बाद वन विभाग ने मतदाता सूची ली और उसी के अनुसार मामला दर्ज कर लिया.
पलिया के भाजपा विधायक रोमी साहनी ने बताया कि उस समय न केवल उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जो जंगल में गए थे, बल्कि उन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए जो कभी घर से बाहर नहीं निकल पाते हैं. शारीरिक रूप से अक्षम और मृत लोगों के खिलाफ भी आरोपी बना दिया. इन मामलों में से एक में सूरदास राम भजन (40) का नाम भी शामिल है, जो जन्म से अंधे हैं. उनका कहना था कि उन्होंने तो कभी जंगल देखा भी नहीं. वह अपनी 70 वर्षीय मां की मदद से चलते हैं. वहीं उनका छोटा भाई राजन मानसिक रूप से विकलांग है और बचपन से ही जंजीरों में रहा है. फिर भी नों पर मामला दर्ज किया गया. इन पर अवैध रूप से पेड़ काटने का आरोप लगाया गया था
सीएम योगी से मिले
पीड़ितों की समस्याओं को लेकर रोमी साहनी ने 28 अक्टूबर को मुख्यमंत्री आवास पर ग्रामीणों के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. यहां सारी समस्या बताई. ये खबर आप गज़ब वायरल में पढ़ रहे हैं। साथ ही जांच कर दर्ज मामले वापस लेने की मांग की. इस पर सीएम ने उन्हें आश्वासन दिया कि मामले की जांच की जाएगी और झूठे तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत प्रदान की जाएगी.
अब मिली राहत
इसके बाद अब थारू समाज के लोगों के लिए गुड न्यूज आई. सरकार ने 3 सदस्यीय टीम गठित कर दी है. टीम में एक आईएफएस अधिकारी और 2 एसडीओ को रखा गया है. ये तीनों अधिकारी जांच करे के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेंगे. फिर इस रिपोर्ट को शासन को सौंपेंगे. इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.
केस वापस लेने की क्या है प्रक्रिया?
बता दें कि वन अधिनियम की धारा ,11,27,35,161 और 511 वापस लिया जा सकता है. लेकिन धारा 9 शिकार से जुड़ा हुआ मामला है और इस धारा में दर्ज मुकदमा तभी वापस लिया जा सकता है, जब राज्य सरकार या लोक अभियोजक या न्यायालय की अनुमति से धारा 321 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत वन अधिकारी या अभियोजन अधिकारी को आवेदन दिया जाता है. इसके साथ ही बताया जाता है कि मामला समझौते गलतफहमी या समाधान से निपट गया है.




