महाकुंभ में नहाने पर 10% का टैक्स देना होता था, इस राज में होती थी वसूली

कुंभ का इतिहास काफी पुराना है. इन दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की धूम है. हजारों किलोमीटर दूर से लोग इस ऐतिहासिक महाकुंभ का साक्षी बनने आ रहे हैं. लोगों के भीतर इसे लेकर खूब क्रेज है. भारत के इस पौराणिक महाकुंभ में पूरी दुनिया आस्था के रंग में डूबी हुई है. कुंभ में इस साल लगभग 60 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. 144 साल में पहली बार होने वाले महाकुंभ में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस महाकुंभ में स्नान करने पर टैक्स लगता था? जी हां, आपने सही पढ़ा. आइए जानते हैं इस मामले के बारे में विस्तार से….

ब्रिटिश शासन का यह कैसा टैक्स?

कई दशकों पहले कुंभ मेला एक अलग रूप में होता था. ब्रिटिश शासन के दौरान यह मेला राजस्व का एक सोर्स बन गया था. साथ ही राष्ट्रवाद और क्रांति का आधार भी बन गया था. 19वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब प्रयागराज को अपने अधीन किया, तब उन्हें यह जानकारी मिली कि कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है. तब अंग्रेजों ने इसे राजस्व के स्रोत के रूप में देखा. ब्रिटिशों को कुंभ के धार्मिक महत्व में कोई रुचि नहीं थी, वे बस इसे व्यवसाय के रूप में देख रहे थे.

इतना चुकाना होता था टैक्स

अब ब्रिटिश शासन ने इससे राजस्व के बारे में सोचना शुरू किया. फिर उन्होंने हर उस व्यक्ति से 1 रुपया लेना शुरू कर दिया, जो कुंभ के पवित्र संगम में स्नान करने के लिए आते थे. मजबूरन हर श्रद्धालु को यह टैक्स चुकाना पड़ता था. अब आप सोच रहे होंगे कि एक रुपया क्या ही होगा, लेकिन उस समय एक रुपया बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. उस वक्त औसत भारतीय की सैलरी 10 रुपये से कम होती थी. यह ब्रिटिशों का एक तरीका था भारतीयों का शोषण करने का.

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इस किताब में पूरा ब्योरा

व्यापारियों से भी टैक्स लिया जाता था जो कुंभ मेला में व्यापार करते थे. साल 1870 में ब्रिटिशों ने 3,000 नाई को दुकानें अलॉट की थीं. अंग्रेजों ने उनसे करीब 42,000 रुपये कमाए थे. इनमें से एक चौथाई रकम नाईयों से टैक्स के रूप में ली जाती थी. हर नाई को 4 रुपये टैक्स देना पड़ता था. उस दौरान एक ब्रिटिश महिला भारत में लगभग 24 साल बिताई थी. उस महिला का नाम फैनी पार्क था. उन्होंने अपनी किताब वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स में स्थानीय व्यापारियों पर प्रभाव के बारे में लिखा था. इतिहासकार विलियम डेलरिंपल ने साल 2002 में एक बार फिर बेगम, ठग्स एंड व्हाइट मुगल्स प्रकाशित किया. उन्होंने बताया कि यह टैक्स उन श्रद्धालुओं से लिया जाता था जो कुंभ मेला आते थे. किताब में लिखा कुछ अंश इस प्रकार है:

“साल के इस समय में लाखों-लाखों स्थानीय लोग गंगा और यमुना के संगम पर स्नान करने आते हैं. वे किले के ठीक नीचे फैली हुई भूमि या कहें कि रेत के छोर पर जमा होते हैं. इस पवित्र स्थान पर हजारों की संख्या में ब्राह्मण और धार्मिक भिक्षु जमा होते हैं. सब फकीर एक बांस गाड़ते हैं जिसके सिरे पर उनका झंडा फहराया जाता है, जिस पर उसी धर्म के लोग आते हैं. यहां वे पूजा करते हैं, दाढ़ी बनाते हैं, फकीर को पैसे देते हैं और संगम पर स्नान करते हैं. स्नान करने वालों के कपड़े चारपाई पर रख दिए जाते हैं, जिसकी देखभाल के लिए पैसे दिए जाते हैं. प्रत्येक स्थानीय निवासी, चाहे वह कितना भी गरीब क्यों न हो, स्नान करने से पहले सरकार को एक रुपया कर देता है. लोगों को खुद या अपने बच्चों को डूबने से बचाने के लिए सरकार के आदेश से इस स्थान पर दो नावें रखी जाती हैं. किसी विशेष दिन गंगा के पानी में स्नान करने मात्र से पिछले दस जन्मों में किए गए दस पाप, चाहे कितने भी बड़े हों, धुल जाते हैं. गंगा और यमुना के संगम पर कितना अधिक प्रभाव होगा, जहां तीसरी पवित्र नदी सरस्वती भूमिगत रूप से मिलती है! किसी विशेष तारे के साथ चंद्रमा के संयोग के भाग्यशाली क्षण पर या सूर्य या चंद्रमा के ग्रहण के समय स्नान करने से होने वाले लाभ बहुत अधिक हैं.”

क्रांति की शुरुआत

इसे देखते हुए स्थानीय लोगों का आक्रोश बढ़ गया. इस समय कई ईसाई मिशनरी भी प्रयागराज आ रहे थे और हिंदू श्रद्धालुओं को धर्मांतरण के लिए प्रेरित कर रहे थे. इससे स्थानीय लोग और भी नाराज हो गए थे. साल 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयागवालों ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया था. हालांकि वे खुद युद्ध में भाग नहीं ले पाए थे. इस प्रकार कुंभ मेला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गया था.

महात्मा गांधी की एंट्री

देखते-देखते कुंभ मेला राष्ट्रीय आंदोलन का एक बड़ा केंद्र बन गया था. साल 1918 में महात्मा गांधी ने कुंभ मेला में आकर गंगा में स्नान किया था. इससे ब्रिटिश प्रशासन परेशान हो गया था. उन्होंने गांधीजी पर नजर रखने के लिए खुफिया रिपोर्ट तैयार की थी. साल 1942 के कुंभ मेला में ब्रिटिशों ने श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगा दी थी. ब्रिटिशों का कहना था कि यह जापान के हमले से बचने के लिए किया गया था. कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कदम भारत छोड़ो आंदोलन की बढ़ती ताकत को देखते हुए लिया गया था.

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