Dhanteras 2025 Deepdan: धनतेरस पर कब जलाएं यम दीपक? नोट करें मुहूर्त, विधि और मंत्र!


Dhanteras Deepdan Vidhi-Mantra Muhurat: कार्तिक मासा के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 18 अक्टूबर, शनिवार को है। धनतेरस से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं जो इसे और भी खास बनाती हैं। धनतेरस की शाम को यमराज को प्रसन्न करने के लिए खास दीपक जलाया जाता है। इसे यम दीपदान कहते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार में किसी की भी अकाल मृत्यु नहीं होती। जानें धनतेरस पर कैसे करें यम दीपदान, मंत्र और शुभ मुहूर्त…

धनतेरस 20 दीपदान के लिए शुभ मुहूर्त
धनतेरस पर शाम को प्रदोष काल में यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। 18 अक्टूबर, शनिवार को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 48 मिनिट से शुरू होगा, जो 07 बजकर 04 मिनिट तक रहेगा। यानी दीपदान के लिए आपको पूरे 1 घंटे 15 मिनिट का समय मिलेगा। इस दौरान आप कभी भी दीपदान कर सकते हैं।

धनतेरस पर दीपदान की विधि और मंत्र
– 18 अक्टूबर, शनिवार को यानी धनतेरस की शाम शुभ मुहूर्त में मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और इसमें तिल का तेल भर लें। दीपक में 2 बड़ी रूई की बत्तियां इस प्रकार रखें कि ये दीपक चौमुखा हो जाए।
– अब इस दीपक को दक्षिण दिशा में रख दें और इसमें काले तिल डालें। कुमकुम से तिलक करें, चावल रोली व फूल आदि अर्पित कर इसकी पूजा करें। नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए दीपक जलाएं…
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।
– अब हाथ में फूल लें और यमराज को नमस्कार करते हुए ये दीपक के पास रख दें। ऐसा करते समय ये मंत्र बोलें-
ऊं यमदेवाय नम:। नमस्कारं समर्पयामि।।
– इसके बाद बताशा या मिठाई दीपक के पास रखते हुए ये मंत्र बोलें-
ऊं यमदेवाय नम:। नैवेद्यं निवेदयामि।।
– हाथ में जल लेकर दीपक के पास छोड़े दैं और ये मंत्र बोलें-
ऊं यमदेवाय नम:। आचमनार्थे जलं समर्पयामि।
– दक्षिण दिशा की ओर नमस्कार करते हुए ऊं यमदेवाय नम: बोलें। इस तरह धनतेरस पर दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

क्यों करते हैं धनतेरस पर दीपदान?
यम दीपदान से जुड़ी एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है- ‘एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा ‘तुम रोज लोगों के प्राण हरते हो, क्या तुम्हें कभी किसी पर दया नहीं आई?’
यमदूत बोलें ‘पृथ्वी पर हेम नाम का एक सुंदर राजकुमार था। जन्म कुंडली देखने पर ज्योतिषियों को पता चला कि जब भी इस बालक का विवाह होगा, उसके 4 दिन बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी।
‘इस डर से उसके पिता ने उसे सबसे दूर एक गुफा में रखकर बड़ा किया। एक दिन राजा हंस की बेटी घूमते-घूमते उस गुफा में पहुंच गई। राजकुमार उसे देखकर मोहित हो गया और उन दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया।’
‘विवाह के चौथे दिन ही राजकुमार हेम की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु देख उसकी नवविवाहिता पत्नी जोर-जोर से रोने लगी। उस राजकुमार के प्राण लेते समय हमें बहुत दुख हुआ था।‘
तब यमराज ने कहा ‘अगर कोई धन त्रयोदशी की शाम मेरे निमित्त दीपदान करेगा तो उसे और उसके परिवार के किसी को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।’ तभी से धनतेरस पर यमराज के लिए दीपदान की परंपरा चली आ रही है।

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