हार का डर या सियासी गणित, चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हटे प्रशांत किशोर?

हार का डर या सियासी गणित, चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हटे प्रशांत किशोर?

खगड़िया/पटना;  बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार प्रशांत किशोर की नई नवेली पार्टी जनसुराज भी मैदान में है. यह पार्टी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इस बीच सबसे खास बात है कि जनसुराज के प्रमुख खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.

दरअसल, प्रशांत किशोर ने वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को सीधी चुनौती दी थी, लेकिन जमीनी हकीकत पता चलने पर उन्होंने मन बदल लिया. अब इसे हार का डर कहा जाए या फिर सियासी गणित. ऐसे में यह बड़ा सवाल बन गया है कि प्रशांत किशोर चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हटे?

जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर पिछले करीब 3 सालों से राघोपुर विधानसभा पर अपनी नजर गाड़े बैठे थे.

सूत्र बताते हैं कि प्रशांत ने राघोपुर की जमीनी हकीकत को भांपने के लिए अपनी एक टीम को भी लगाया हुआ था. बिहार विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद उन्होंने तेजस्वी यादव पर निशाने साधने भी शुरू कर दिए. इतना ही प्रशांत किशोर ने तेजस्वी पर तंज कसते हुए कह दिया कि जैसे राहुल गांधी अमेठी छोड़कर भागे थे, वैसे ही तेजस्वी यादव भी राघोपुर को छोड़कर भागेंगे. प्रशांत ने तेजस्वी पर ‘नौवीं फेल’ जैसे तंज कसे, लेकिन जब उन्होंने रैली की, तो जनता का मूड पढ़ लिया और समय रहते हुए पीछे हट गए.

प्रशांत किशोर ने चुनाव न लड़ने की बताई वजह

जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने चुनाव न लड़ने की वजह बताई है. एक मीडिया के मंच पर उन्होंने इस सवाल का जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि चुनाव न लड़ने की पीछे समय की मर्यादा है. अब हमारे पास प्रचार के लिए सिर्फ 17 दिन बचे हैं. मेरे चुनाव लड़ने पर व्यापक चर्चा हुई थी, लेकिन फिर यह निष्कर्ष निकला कि अगर हम चुनाव लड़ते तो उन्हें एक ही विधानसभा में 3 से 4 दिन का समय देना पड़ता जो संभव नहीं है. इन 4 दिनों में हम 30 से 40 विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशियों का प्रचार करेंगे. पार्टी के सीनियर साथियों के विचार-विमर्ष के बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया.

हार का नहीं डर, कोई मेरा इमान नहीं खरीद सकता

प्रशांत किशोर का कहना है कि कुछ लोग उनके फैसले को हार का डर बता रहे हैं. मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं. मेरे लड़ने के फायदे और नुकसान पर चर्चा हुई और उसके बाद चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया गया. अगर हारने का डर होता तो बिहार में इस तरह का प्रयास नहीं करता है. किसी ने भी पिछले करीब 25 से 30 सालों में इस तरह का प्रयास नहीं किया है. उन्होंने कहा कि हर कोई जानता है कि बिहार में प्रशांत किशोर किसी से भी नहीं डरते और किसी के पास इतना पैसा नहीं है जो उनका इमान खरीद सके.

लालू-राबड़ी का गढ़ है राघोपुर

वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा लालू-राबड़ी राज से ही यादव परिवार का गढ़ रहा. 2020 में तेजस्वी ने यहां से शानदार जीत हासिल की थी. 2015 में भी आरजेडी का दबदबा था. इस सीट से लालू प्रसाद और राबड़ी देवी भी विधायक बने हैं. राघोपुर में यादव वोट बैंक (लगभग 30-35%) इतना मजबूत है कि बाहरी चेहरे के लिए इसे भेद पाना मुश्किल है. माना जाता है कि जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने इसे करीब से भांप लिया और पीछे हटने में ही समझदारी समझी.

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