
नई दिल्ली। शेयर नियामक संस्था SEBI क्लियरिंग कॉरपोरेशन के लिए हायर फीस पर विचार कर रही है, और इससे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की स्टैंडअलोन इनकम में कमी आ सकती है। क्योंकि, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन, जो एक्सचेंज की ओर से अधिकांश जोखिमों को वहन करता है, द्वारा ली जाने वाली फीस में वृद्धि होगी। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि क्लियरिंग हाउसेज की फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस और चार्जेस पर विचार कर रहे एक कार्य समूह का मानना है कि क्लियरिंग कॉर्पोरेशनों के ट्रांजेक्शन चार्जेस की समीक्षा की जानी चाहिए, उन्हें वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
सेबी क्यों बढ़ाना चाहती है फीस?
दरअसल, शेयर बाजार में एनएसई एक एक्सचेंज प्लेटफॉर्म है जहां ट्रेड किए जाते हैं, जबकि इसकी क्लियरिंग ब्रांच एनएसई की सहायक कंपनी एनएसई क्लियरिंग लिमिटेड है। शुल्क संरचना में बदलाव का अर्थ होगा कि एनएसई और अन्य एक्सचेंज अपने सदस्यों से एकत्रित ट्रांजेक्शन चार्ज में कम हिस्सा लेंगे, तथा अपनी क्लियरिंग ब्रांच को वर्तमान की तुलना में अधिक हिस्सा प्राप्त करने देंगे, जिससे उन्हें अधिक आय होगी और उनकी बैलेंस शीट मजबूत होगी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा गठित तथा भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर.एस. गांधी की अध्यक्षता वाला कार्य समूह एक ऐसे प्रस्ताव पर भी विचार कर रहा है जिसके तहत ‘क्लियरिंग सदस्यों’ को सेटलमेंट गारंटी फंड (SGF) में योगदान करना होगा।
इस बारे में एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “चूंकि क्लियरिंग सदस्य ज़्यादा जोखिम उठाते हैं, इसलिए उन्हें नियमित लेनदेन शुल्क से कुछ ज़्यादा भुगतान करना चाहिए। इसलिए, क्लियरिंग सदस्यों के लिए बैंक गारंटी के ज़रिए एसजीएफ का समर्थन करने का प्रस्ताव है, क्योंकि कुछ बाज़ारों में ऐसा चलन है।”
बता दें कि सेबी द्वारा गठित इस कार्य समूह की रिपोर्ट को इस वर्ष तक अंतिम रूप देने की उम्मीद है। यह रिपोर्ट इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि क्लियरिंग कॉरपोरेशन की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए एक ठोस योजना एनएसई की बहुचर्चित आईपीओ योजना के लिए एक पूर्व शर्त मानी जा रही है।