CPI, RJD, VIP और कांग्रेस, जहां आपस में लड़ रहे, वहां समीकरण क्या हैं?

CPI, RJD, VIP और कांग्रेस, जहां आपस में लड़ रहे, वहां समीकरण क्या हैं?

पटना:  बिहार महागठबंधन में अब दरारें खत्म होती नजर आ रहीं हैं। कम्युनिस्ट पार्ट ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि इस बार महागठबंधन बड़ा है।

विकासशील इंसान पार्टी नए दल को शामिल कराना चाहती थी, इसलिए हर किसी को कुछ सीटें छोड़नी पड़ीं। सीट बंटवारे में देरी इसी वजह से हुई है।

दीपांकर भट्टाचार्य का इशारा कुछ सीटों पर फ्रैंडली फाइट को लेकर था। उनका कहना है कि ऐसा हो सकता है कि पहले चरण की नामांकन वापसी तक कुछ सीटों पर आम सहमति बन जाएगी और महागठबंधन पूरी एकता के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा।

दीपांकर भट्टाचार्य:-

हर सीट पर हम एकजुट नजर नहीं आए हैं।

हमने फ्रैंडली फाइट से बचने की कोशिश की है। हमारी ओर से एकता बरकरार है। नामांकन वापसी के बाद पूरी एकता से हम महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे हैं।

किन सीटों पर हो रही है फ्रैंडली फाइट?

लालगंज: शिवानी शुक्ला (आरजेडी) बनाम आदित्य कुमार राजा (कांग्रेस),दोनों पार्टियों के दावे मजबूत हैं। सीधा आमने-सामने का मुकाबला है। वोट बंटने का खतरा है, जिससे एनडीए को फायदा हो सकता है। शिवानी शुक्ला, बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं।

सियासी समीकरण: यहां यादव, भूमिहार, कुर्मी और मुस्लिम मतदाता चुनावी समीकरण तय करते हैं। बाहुबली वर्चस्व और विकास दोनों मुद्दे केंद्र में रहते हैं। बीजेपी, आरजेडी और कांग्रेस सभी यहां जीतने के लिए जातीय वोट साधने की कोशिश करते हैं। यादवों का खास वोट है, भूमिहार भी निर्णायक संख्या में हैं। 2020 में बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी।

सिकंदरा: उदय नारायण चौधरी (आरजेडी) बनाम विनोद चौधरी (कांग्रेस)

सिकंदरा में भी फ्रैंडली फाइट के आसार हैं। अभी तक नामांकन वापस नहीं लिया गया है। अगर दोनों लड़े तो फायदा एनडीए को होगा।

सियासी समीकरण: यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। लगभग 18.93% SC वोटर और 12.8% मुस्लिम वोटर हैं। यहां कांग्रेस, आरजेडी, CPI और NDA के बीच मुकाबला रहता है। जातीय समीकरण में पासवान, मुसलमान और अन्य दलित वर्ग प्रभावशाली हैं। 2020 में हम (HAM) ने कांग्रेस को हराया था। ग्रामीण आबादी अधिक है, वोटर संख्या करीब 3 लाख है।

वारिसलीगंज: अनीता देवी (आरजेडी, अशोक महतो की पत्नी) बनाम मंटू सिंह (कांग्रेस)

पारंपरिक सीट पर तगड़ा टकराव देखने को मिल रहा है। आरजेडी को सिम्बल मिला, लेकिन कांग्रेस ने पीछे हटने से इनकार किया है।

सियासी समीकरण: जाति, दबदबा और विकास तीनों फैक्टर यहां अहम हैं। यादव, भूमिहार, कुर्मी, मुस्लिम, रविदास और पासवान की अहम हिस्सेदारी है। भूमिहार, यादव, मुस्लिम और पासवान वोटर निर्णायक हैं। दो बाहुबली परिवारों का दबदबा है। यहां बीजेपी मजबूत है, नुकसान महागठबंधन को हो सकता है।

रोसड़ा: पूर्व डीजीपी बीके रवि (कांग्रेस) बनाम CPI के लक्ष्मण पासवान

त्रिकोणीय लड़ाई की स्थिति। वाम वोटों के बंटवारे से गठबंधन को नुकसान हो सकता है। लक्ष्मण पासवान का नामांकन रद्द होने से कांग्रेस बनाम एनडीए की अब लड़ाई है।

कहलगांव: रजनीश यादव (आरजेडी) बनाम प्रवीण कुशवाहा (कांग्रेस)

आरजेडी का गढ़ माना जाता है, लेकिन कांग्रेस की चुनौती से वोटरों में भ्रम की स्थिति बन सकती है।

सियासी समीकरण: यह आरजेडी का पारंपरिक गढ़ है। यादव वोटर सबसे प्रभावशाली हैं। मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग भी निर्णायक हैं। कांग्रेस की चुनौती से वोट बंट सकता है, जिससे एनडीए को फायदा हो सकता है।

बिस्फी: आशिफ अहमद (आरजेडी) बनाम रशीद फाखरी (कांग्रेस)

यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यादव वोटर प्रभावी हैं। पारंपरिक रूप से आरजेडी मजबूत है। अब अगर नामांकन वापस नहीं होता है तो वोटों का बंटवारा बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है।

राजापाकड़: विधायक प्रतिमा दास (कांग्रेस) बनाम CPI के मोहित पासवान

CPI के नामांकन से गठबंधन में असंतोष साफ झलक रहा है। नामांकन भी तल्खी दिखी। लेफ्ट और कांग्रेस की जंग से मुकाबला रोचक बना हुआ है।

बिहारशरीफ: ओमेर खान (कांग्रेस) बनाम CPI के शिव प्रकाश यादव

2020 में यहां से आरजेडी उतरी थी, अब अगर सीपीआई उम्मीदवार ने नाम वापस नहीं लिया तो संघर्षपूर्ण स्थिति देखने को मिल सकती है।

बछवाड़ा: प्रकाश दास (कांग्रेस) बनाम सीपीआई के अवधेश राय

वाम दलों और कांग्रेस का टकराव देखनो को मिल रहा है। गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं।

तारापुर: अरुण कुमार शाह (आरजेडी) बनाम सकलदेव प्रसाद (वीआईपी)

वीआईपी, गठबंधन के लिए तैयार नहीं है। अरुण कुमार शाह, तेजस्वी यादव के करीबी बताए जाते हैं। मुकेश सहनी, सकलदेव प्रसाद के नाम पर अड़े हैं। दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है।

भभुआ: वीरेंद्र कुशवाहा (आरजेडी) बनाम बाल गोविंद (वीआईपी)

वीआईपी की मांगें न मानने से अब महागठबंधन की दोनों पार्टियां आमने आमने आ गईं हैं। दोनों खेमों में कड़ा मुकाबला।

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